इस्लाम में जुमा की नमाज़ को काफी खास माना गया हैं इस दिन नमाज़ पढ़ने से अल्लाह उस हफ्ते के गुनाहो को माफ़ कर देता हैं, इस दिन अल्लाह अपने बन्दों पर मेहरबान रहता हैं और उनकी सारी गलतियों को माफ़ कर देता हैं, इसलिए इस दिन काफी तादाद में लोग जुमे की नमाज़ अदा करने आते हैं जुमा की नमाज़ का वक़्त वही है जो ज़ोहर की नमाज़ का होता हैं।
जुमा के लिए खुतबा शर्त है बिना खुतबा पड़े जुमा की नमाज़ नहीं होगी जो शख्स खुतबा न पड़े सके वह जुमा की नमाज़ में इमाम नहीं हो सकता खुतबा के लिए जो इमाम मुकर्रर है, अगर उनकी इजाजत के बिना कोई दूसरा आदमी खुतबा पड़ दे तो नमाज़ नहीं होगी। खुतबा जबानी या देखकर पड़ा जा सकता है, खुतबा अरबी में ही पड़ा जाए जो काम नमाज़ की हालत में करना हराम या मना है खुतबा की हालत में भी हराम व मना है खुतबा सुनना फर्ज है अगर आवाज न पहुंचे तो भी खामोश रहना और खुतबा की तरफ ध्यान रखना वाजिब है। खुतबे के दोरान इधर उधर गर्दन फेर कर देखना गुनाह है खुतबे में सरकार का नाम आये तो अंगूठे न चूमे बल्कि दिल ही में दुरुद शरीफ पड़े ले खामोश रहना फ़र्ज़ है इमाम खुतबा पड़ रहा हो तो कोई वजीफा पड़ना जायज नहीं।
जुमा का खुतबा नमाज़ से पहले पड़ना फ़र्ज़ है अगर बाद में पड़ा तो नमाज़ नहीं हुई।
जुमे की नमाज़ में कुल 14 रकात होती हैं जो इस तरह होती हैं 4 सुन्नत जो हमें पढ़ने होती हैं जो फ़र्ज़ नमाज़ से पहले पढ़ी जाती हैं उसके बाद 2 फ़र्ज़ जो इमाम पढ़वाता हैं उसके बाद 4 सुन्नत फिर 2 सुन्नत और 2 नफ़्ल जिसे हमें फ़र्ज़ नमाज़ के बाद पढ़ना होता हैं इस तरह 14 रकात पढ़ी जाती हैं।
जुमा की नमाज़ हो जाने के बाद जुमा या ज़ुहर की दूसरी जमाअत नहीं हो सकती सब अपनी अपनी नमाज़ अकेले अकेले पढ़े। एक मस्जिद में दो जुमा नहीं हो सकते अगर मुक़र्रर इमाम ने जुमा की नमाज़ पढ़ा दी बाद में कुछ लोग आये और उन्होंने जमाअत से जुमा की नमाज़ किसी और इमाम के पीछे पढ़ ली तो उनकी नमाज़ नहीं हुई।
खुतबा से पहले जो 4 रकात सुन्नत नमाज़ पढ़ी जाती हैं अगर किसी वजह से नमाज़ पहले न पढ़ा तो बाद में सुन्नत की नियत से पढ़े
जुमा के दिन की गयी नेकी 70 गुना नेकी के बराबर होती हैं, इसलिए हम सभी को जुमा की नमाज़ पाबन्दी से पढ़नी चाहिए।
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