मोहर्रम के मौके पर बहुत सारी गलत रस्मो या कामो को किया जाता हैं। इन रस्मो का इस्लाम से कोई ताल्लुक नहीं है, लेकिन मुसलमान आज उन्हें अपना ईमान समझने लगे हैं। उनका यह मानना हैं की आशूरा के दिन यही चीज़े की जानी चाहिए। यह बहुत बड़ी गुमराही है। हजारों रुपए का रोज़ा बनाकर पानी में ठंडा कर देना,मिट्टी में दफन कर देना या जंगल में फेंक देना कौन सी अकलमंदी या इस्लामी शान हैI इसी तरह से तो कौम का बहुत बड़ा सरमाया (संपत्ति) बर्बाद हो जाता है जो कि हराम है।
इसके अलावा ढोल ताशे बजाना,मातम करते हुए गली गली फिरना,हाथो और सीने को जंजीरों,औज़ारो से जख्मी करना, ताजिये के नीचे अपने बच्चे को लेटाना, ताजिए को सजदा करना उसके नीचे की धूल अपने चेहरे पर मलना, बच्चों को मोहर्रम का फकीर बनाना, मोहर्रम की फातिहा के लिए भीख मंगवाना,तैयार होकर नए कपड़े पहनकर सज धज कर सीना खोले हुए गली-गली घूमना,ताजिया का जुलूस देखने के लिए औरतों,लड़कियों का बेपर्दा होकर सज-धज कर बाज़ार में घूमना,ताजियों को इमाम हुसैन का रोज़ा मानना उसे झुक झुक कर सलाम करना,ताजिये को हज़रत इमाम हुसैन का रोज़ा समझकर फातेहा लगाना,फूल माला चढ़ाना इसके अलावा और दूसरी गैर इस्लामी रस्मे हमारे लिए जायज़ नहीं।
हर मुसलमान को इन हरकतों से बचना चाहिए। यह सब काम करना गुनाहे कबीरा हैं। लेकिन नहीं यह तो सालों से चला आ रहा हैं इसे करना तो वह अपना फ़र्ज़ मानते हैं। इन सब कामो को करने की बजाये हमें उस दिन नमाज़,रोज़ा और क़ुरान की तिलवात करनी चाहिए भूखे प्यासे लोगो के लिए खाने पीने का इंतेज़ाम करना चाहिए ।
ताजियादारी या मोहर्रम की रस्में हिंदुस्तानी मुसलमानों का एक त्यौहार सा बन गया है। इनका इस्लाम से कोई ताल्लुक नहीं है। हमें त्यौहार मनाना, खुशी मनाना जायज़ है लेकिन यह ध्यान रखना जरूरी है कि हमारी इस हरकत या अमल से इस्लामी अक़ीदे को नुकसान तो नहीं पहुंच रहा है ।
अल्लाह हमें हज़रत इमाम हुसैन की शहादत के असली पैगाम पर अमल करने की तौफीक अता फरमाए आमीन ।
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