दुनिया की ज़िंदगी खत्म होने के बाद मुसलमानों पर पांच मुसीबते आती है। मौत,कब्र,हश्र, पुल सिरात और जन्नत का दरवाजा बंद होना। अल्लाह ने इन मुसीबतों को टालने व आसान करने के लिए पांच नमाजे फ़र्ज़ फ़रमाई हैं। दिन और रात की भी पांच हालतें होती है। सुबह, दोपहर, सेहपहर, शाम और रात इन वक्तो में नमाज़े फ़र्ज़ की गई ताकि मोमिन के हर वक्त की शुरुआत अल्लाह की इबादत से हो सुबह होने पर फज्र की नमाज़ अदा करके बंदा अपने दिन की शुरुआत अल्लाह के जिक्र व इबादत से करता है।
दोपहर में कारोबारी मसरूफियात के बाद खाना खाता है और थोड़ी देर आराम करता है। फिर ज़ोहर की नमाज अदा करके अपने दूसरे वक्त की शुरुआत अल्लाह की इबादत से करता है। कामकाज में लग जाने के बाद फिर अस्र की नमाज अदा करके वापिस कारोबार में लग जाने का तीसरा मौका मिलता है। यहां तक कि सूरज डूब जाता है और मगरिब की नमाज अदा करके इंसान अपने दिन भर के हिसाब किताब को समेटता है और ईशा की नमाज अदा करके दिन भर के थके दिल व दिमाग को आराम व सुकून देने के लिए सो जाता है। इस तरह एक मोमिन की जिंदगी का हर दिन और दिन का हर-हर पहर अल्लाह के जिक्र से शुरू और आबाद रहता है।
नुज़हतुल मजालिस में पांच नमाज़ो की खसूसियात यह भी लिखी है कि फज्र व ईशा की नमाज़ का वक्त कब्र और क़यामत के अंधेरे की तरह है। जिसने ईशा की नमाज़ अदा की उसने अपनी कब्र में रोशनी का इंतेज़ाम कर लिया। इसलिए तो कहा गया है कि नमाज़ कब्र के अंधेरे में रोशनी का काम करेगी और फज्र की नमाज़ के बदले नमाज़ी को दोज़ख से बरी कर दिया जाएगा। ज़ोहर के वक्त जहन्नम भड़कायी जाती है। ज़ोहर की नमाज़ अदा करने वाला गुनाह से साफ कर दिया जाता है। अस्र के वक्त हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने जन्नत में गेहूं का दाना खाया था। जिसने यह नमाज़ अदा की उस पर जहन्नम हराम कर दी जाती है। मगरिब के वक्त हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की तौबा कबूल हुई थी। जो आदमी इस वक्त में नमाज़ अदा करेगा, वह अल्लाह से जो मांगेगा उसे वह दिया जाएगा।
बुखारी शरीफ की हदीस है ताजदार ए मदीना सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम फरमाते हैं ! पंज वक्ता नमाज़ो की मिसाल उस नहर जैसी है जो हर मुसलमान के घर के आगे से जारी है। जो आदमी यह पांचों नामज़े पढ़ता रहेगा गोया उसने 5 बार नहर में ग़ुस्ल किया। जिस तरह रोज़ाना पांच बार नहाने वाले के बदन पर मैल नहीं रहती, उसी तरह पाबंदी से पांचो नमाज़े पढ़ने वाले के गुनाह बाकी नहीं रहेंगे।
पांच का इंसानी जिंदगी से बड़ा गहरा रिश्ता है। खुद इंसान की पैदाइश भी पांच मंजिलें तय करने के बाद इंसानी शक्ल सूरत में आती है। नुतफा, अलक़ा मुज़गह, अज़मा, लहमा इसी तरह इंसान की भी पांच हैसियत होती है, बैठना,सोना,जागना,लेटना,उठना। इस तरह इंसान पांच वक्त की नामज़े अदा करके अल्लाह पाक के एहसानों का शुक्रिया अदा करता है।
मेराज की रात 50 वक्त की नमाज़े फ़र्ज़ हुई थी, जिनमें से 45 माफ कर दी गई। अब पांच बाकी है वही पांच नमाज़े फ़र्ज़ हैं। इन पांच नमाज़ो के बदले आपको सवाब 50 नमाज़ो का मिलता हैं। क्यूंकि अल्लाह पाक ने अपने कलाम में हर नेकी का बदला 10 गुना अता फरमाने की बशारत सुनाई है। इसलिए पढ़ने में पांच नमाज़े ही है लेकिन सवाब में 50 के बराबर है। अल्लाह पाक हमें पांच वक़्त की नमाज़ पढ़ने की तौफीक अता फरमाए आमीन।
दोपहर में कारोबारी मसरूफियात के बाद खाना खाता है और थोड़ी देर आराम करता है। फिर ज़ोहर की नमाज अदा करके अपने दूसरे वक्त की शुरुआत अल्लाह की इबादत से करता है। कामकाज में लग जाने के बाद फिर अस्र की नमाज अदा करके वापिस कारोबार में लग जाने का तीसरा मौका मिलता है। यहां तक कि सूरज डूब जाता है और मगरिब की नमाज अदा करके इंसान अपने दिन भर के हिसाब किताब को समेटता है और ईशा की नमाज अदा करके दिन भर के थके दिल व दिमाग को आराम व सुकून देने के लिए सो जाता है। इस तरह एक मोमिन की जिंदगी का हर दिन और दिन का हर-हर पहर अल्लाह के जिक्र से शुरू और आबाद रहता है।
नुज़हतुल मजालिस में पांच नमाज़ो की खसूसियात यह भी लिखी है कि फज्र व ईशा की नमाज़ का वक्त कब्र और क़यामत के अंधेरे की तरह है। जिसने ईशा की नमाज़ अदा की उसने अपनी कब्र में रोशनी का इंतेज़ाम कर लिया। इसलिए तो कहा गया है कि नमाज़ कब्र के अंधेरे में रोशनी का काम करेगी और फज्र की नमाज़ के बदले नमाज़ी को दोज़ख से बरी कर दिया जाएगा। ज़ोहर के वक्त जहन्नम भड़कायी जाती है। ज़ोहर की नमाज़ अदा करने वाला गुनाह से साफ कर दिया जाता है। अस्र के वक्त हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने जन्नत में गेहूं का दाना खाया था। जिसने यह नमाज़ अदा की उस पर जहन्नम हराम कर दी जाती है। मगरिब के वक्त हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की तौबा कबूल हुई थी। जो आदमी इस वक्त में नमाज़ अदा करेगा, वह अल्लाह से जो मांगेगा उसे वह दिया जाएगा।
बुखारी शरीफ की हदीस है ताजदार ए मदीना सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम फरमाते हैं ! पंज वक्ता नमाज़ो की मिसाल उस नहर जैसी है जो हर मुसलमान के घर के आगे से जारी है। जो आदमी यह पांचों नामज़े पढ़ता रहेगा गोया उसने 5 बार नहर में ग़ुस्ल किया। जिस तरह रोज़ाना पांच बार नहाने वाले के बदन पर मैल नहीं रहती, उसी तरह पाबंदी से पांचो नमाज़े पढ़ने वाले के गुनाह बाकी नहीं रहेंगे।
पांच का इंसानी जिंदगी से बड़ा गहरा रिश्ता है। खुद इंसान की पैदाइश भी पांच मंजिलें तय करने के बाद इंसानी शक्ल सूरत में आती है। नुतफा, अलक़ा मुज़गह, अज़मा, लहमा इसी तरह इंसान की भी पांच हैसियत होती है, बैठना,सोना,जागना,लेटना,उठना। इस तरह इंसान पांच वक्त की नामज़े अदा करके अल्लाह पाक के एहसानों का शुक्रिया अदा करता है।
मेराज की रात 50 वक्त की नमाज़े फ़र्ज़ हुई थी, जिनमें से 45 माफ कर दी गई। अब पांच बाकी है वही पांच नमाज़े फ़र्ज़ हैं। इन पांच नमाज़ो के बदले आपको सवाब 50 नमाज़ो का मिलता हैं। क्यूंकि अल्लाह पाक ने अपने कलाम में हर नेकी का बदला 10 गुना अता फरमाने की बशारत सुनाई है। इसलिए पढ़ने में पांच नमाज़े ही है लेकिन सवाब में 50 के बराबर है। अल्लाह पाक हमें पांच वक़्त की नमाज़ पढ़ने की तौफीक अता फरमाए आमीन।
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