"या लतिफु " यह वह इस्मे पाक हैं जिसके फायदे और बरकते बेपनाह हैं। एक हदीस हैं की एक मर्तबा एक बुज़ुर्ग बड़े परेशान और बदहाल थे। एक अजीब सा खौफ उनके दिमाग पर छाया हुआ था। उनके दिल में हर वक़्त एक खौफ सा रहता था। जिसकी वजह से उन्हें कभी आराम नहीं मिलता। उन बुज़ुर्ग ने एक दिन सोचा की हर दर्द की दवा हैं मुहम्मद के शहर में है तो फिर क्यों न मक्का मुअज़्ज़मा का सफर किया जाये। इससे हज का फ़र्ज़ भी अदा हो जायेगा और दरबारे रसूले पाक में हाज़री भी हो जाएगी और अपने मर्ज़ का इलाज भी हो जायेगा। लेकिन फिर वह सोचने लगे आखिर सफर करें तो कैसे? न सफर के खर्चे के लिए कोई पैसा है और न ही इतना खाने पीने का सामान जो पुरे सफर में चल जाये। लेकिन वह (बुज़ुर्ग) किसी भी हाल में वहां (मक्का मुअज़्ज़मा) जाना चाहते थे। उन्हें बस एक धुन सवार थी की मक्का मुअज़्ज़मा का सफर करना हैं। फिर क्या था उन्होंने खुदा का नाम लिया और चल पड़े मक्का मुअज़्ज़मा के सफर के लिए यह भी नहीं सोचा के आगे उनके साथ क्या होगा। कैसे बिना पैसे और खाने के सफर होगा।
सफर शुरू होते ही पहले दिन उन्होंने काफी गर्मजोशी से सफर किया, लेकिन दूसरे दिन भूक प्यास से उनकी हालत ख़राब हो गयी। फिर सफर के चौथे दिन तो हाथ पैरों ने पूरी तरह से जवाब दे दिया। उन्हें महसूस हुआ की अब वह अब कुछ ही देर के मेहमान हैं। फिर उन्होंने काबा शरीफ की तरफ रुख किया और बैठ गए और सोचा की अगर मर भी गया तो मुँह तो काबा शरीफ की तरफ रहेगा। इतने में उन्हें कमज़ोरी से नींद आ गयी। सपने में आपने (उस बुज़ुर्ग) ने देखा की एक नूरानी चेहरे वाले बुज़ुर्ग आपके करीब आये जिन्होंने अपना नाम खिज्र बताया और उन्होंने आपसे मुसाफहा किया और बशारत दी की तुम बहुत जल्द मक्का मुअज़्ज़मा पहुँच जाओगे और तुम्हारी जो भी ख़्वाहिशें है वो भी पूरी होगी। बस तुम मेरी बताई एक दुआ को दिल से तीन मर्तबा पढ़ लो। यह दुआ मेरी जानिब से तुम्हारे लिए एक तोहफा हैं। जब भी तुम्हें कोई मुश्किल पेश आये तुम इसे तीन मर्तबा पढ़ लेना। इंशाल्लाह तुम्हारी हर मुश्किल आसान हो जाएगी। दुआ इस तरह हैं या लतीफ़म बिखलकेहि या अलिमन या ख़बीर" इस तरह आपने नींद में ही हज़रते खिज्र अलैहिस्सलाम के साथ यह दुआ दुहराई और उसके फ़ौरन बाद किसी शख्स ने आपको नींद से जगा दिया वह शख्स ऊंट पर सवार था और हज के लिए जा रहा था। एक दूसरे की हालत जानने के बाद उस शख्स ने बुज़ुर्ग शख्स को अपने साथ ले लिया। खाने पीने के सामान के अलावा आपको ऊंट की सवारी भी मिल गयी। इस तरह वह बुज़ुर्ग मक्का मुअज़्ज़मा पहुँच गए।
मक्का में पहुंचते ही कोई शख्स आया और उसने रूपए से भरी थैली आपको दी और फ़रमाया की मेरी तरफ से घर वापसी के लिए आप यह रख लीजिये गोया आपकी वापसी के लिए खुदा ने इंतज़ाम फरमा दिया था। उसके बाद बुज़ुर्ग आदमी मदीना मुनव्वरा तशरीफ़ ले गए। रौज़ए रसूले पाक की ज़ियारत की और अपने हर मर्ज़ के इलाज की दुआ के साथ वापिस घर वापिस आ गए। कुछ दिन के बाद आपकी जितनी भी परेशानियां थी वह दूर हो गयी। सुभानअल्लाह।
एक और किस्सा सुनिए ! सैरुल आरिफ़िन में हज़रत शेख औहदुद्दीन किरमानी रहमतुल्लाह अलैहि ने भी एक रिवायत में फ़रमाया हैं की एक दिन वह हज़रत शेख जलालुद्दीन तबरेज़ी रहमतुल्लाह अलैहि के हमराह काबा शरीफ के ज़ियारत के लिए जा रहे थे। साथ में उनका काफिला भी था। रेगिस्तान की गर्मी अपनी इंतेहा पर थी। पहाड़ी रास्ते और पानी की किल्लत क़यामत बरपा रही थी। नतीजा यह हुआ की काफिले वालों के तमाम ऊँटो ने दम तोड़ दिया। पहाड़ी लोगो को पता चला तो वह इस मौके का फ़ायदा उठाने की गरज़ से अपने ऊंटों के साथ वहां आ पहुंचे और मुहमांगे दामों में ऊंट बेचने लगे। जो अमीर लोग थे उन्होंने बेझिझक ऊंट खरीदना शुरू कर दिया लेकिन गरीब लोग मायूसी और बेबसी से हाथ मलने लगे। हज़रत शेख जलालुद्दीन तबरेज़ी रहमतुल्लाह अलैहि से यह देखा न गया। आप आगे तशरीफ़ लाये और अपने कपड़ो में से एक थैली निकाली, फिर "या लतीफो पढ़ा" फिर थैली में हाथ डाला और अशरफियां निकल कर ऊंट वालो को देना शुरू कर दी। इसी अमल से आपने एक एक करके पांच सौ ऊंट ख़रीदे और गरीबों में तकसीम फरमा दिए लेकिन खुद पैदल बैतुल्लाह तक तशरीफ़ ले गए।
इस इस्मे पाक (या लतिफु) की ख़ैरो बरकत का ज़िक्र कई और हदीसों में मौजूद हैं। पाबन्दी के साथ इसे पढ़ना कई बलाओं से महफूज़ रखता हैं और कई मुराद पूरी करता हैं। अगर कोई बेरोज़गार हो या तंगदस्ती और फाकाकशी (भूक से मर रहा हो) या किसी और मुसीबत से परेशान हो तो हर नमाज़ के ख़तम होने के बाद 100 मर्तबा "या लतिफु" और 21 मर्तबा दुरुद शरीफ पढ़कर दुआ मांगे। इंशाअल्लाह दुआ कबूल होगी। शर्त यह हैं की जब तक मकसद पूरा न हो तब तक पुरे यकीन और ऐतमाद के साथ यह अमल जारी रखा जाये।
अल्लाह हम सबको इस्लाम में बताये रास्तो पर चलने की तौफीक अता फरमाए आमीन
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