हमारे मुल्क हिंदुस्तान के बरैली शहर में 14 जून 1856 ईस्वी में सनीचर के दिन ज़ोहर के वक़्त हमारे आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां फ़ाज़िले बरैलवी रहमतुल्लाह अलैह पैदा हुए। जिन्होंने इस्लाम को एक नयी ज़िन्दगी बख्शी। उनके किरदार उनके इल्म उनकी किताबों को पढ़कर आप इस्लाम के रास्ते पर चल सकते हैं। आपने ऐसी खूबियां मौजूद थी की आपके सामने दुनिया की बातिल ताकतें भी मात खा गयी। 14 साल की उम्र में आपमें इल्म का ऐसा दरिया था की उस वक़्त के बड़े बड़े आलिमों ने आपके इल्म का लोहा माना। आपने अपनी किसी खिदमत का कभी पैसा नहीं माँगा और मांगते भी क्यों? वह तो अपने आका के ऐसे गुलाम थे की दीन को फैलाना ही उनकी ज़िन्दगी का मकसद था। आपकी इल्मी व अमली काबिलियत को देखकर उस वक़्त के मशहूर बुज़ुर्ग हज़रत वारिस अली शाह आपके लिए बोल पड़े इसका मर्तबा अपने वक़्त के आलिमो और वलियों में आला हैं फिर तो आप आला हज़रत बनकर ही दुनिया में चमके।
आपने ज़िन्दगी भर दीन के दुश्मनो से कभी समझौता नहीं फ़रमाया। गुमराही फ़ैलाने वाली जमाअतों की नापाक हरकतों से हमेशा अवाम को खबरदार फरमाते रहे। आप ऐसी जमाअतों के गलत प्रचारों और अक़ीदों के जवाब में किताबें व रिसाले लिखते रहे। जब महात्मा गाँधी ने आपके मिलने की खवाहिश ज़ाहिर की तो आपने उनको पैगाम भिजवाया की मेरे यहाँ अगर आप दीनी मालूमात हासिल करना चाहते हो तो आ सकते हो सियासी मामलात पर बात करने के लिए आप तैयार नहीं। आपने कभी किसी दुनियादार, हाकिम, नवाब की कभी खुशामद नहीं की।
आपने महज़ 4 साल की उम्र में क़ुरान शरीफ पढ़ लिया था। छह साल की उम्र में आप पंजगाना नमाज़ के साथ साथ तहज्जुद की नमाज़ के भी पाबंद हो गए थे। 4 साल की उम्र के बाद आप कभी मदीना शरीफ और बगदाद शरीफ की तरफ पैर करके न सोये।
आप कितने ज़हीन और दीन के अलीम थे, यह आपके बचपन के वाक़ेआत से अंदाज़ा लगाया जा सकता हैं। आप बहुत छोटे ही थे की एक दीन आपके घर में कुछ मेहमान आये। उनमे काफी आलिम भी थे। आप के वालिद हज़रत नक़ी अली खां ने उन मेहमानों की मेजबानी फ़रमाई। एक मौलाना साहब को वज़ू के लिए पानी की ज़रूरत महसूस हुई। आप वही पास खड़े थे। मौलाना साहब ने फ़रमाया मियाँ ! वज़ू के लिए पानी ला दीजिये आपने फ़रमाया हज़रत ! पहले मुझे चवन्नी दीजिये फिर मैं पानी लाऊंगा। मौलाना साहब को यह बात अच्छी नहीं लगी और हज़रत नक़ी अली खां से आपकी शिकायत कर दी की आपका बच्चा वज़ू का पानी लाने के बदले पैसे मांग रहा हैं। जब मौलाना साहब आपकी शिकायत आपके वालिद से कर रहे थे तब आप भी वहां मौजूद थे। मौलाना साहब के मुँह से शिकायत सुनकर आप (आला हज़रत) बोले हज़रत मैं नाबालिग हूँ और नाबालिग से बिला उजरत या उसके वालेदैन की इजाज़त के बगैर खिदमत लेना मना हैं। आपकी बात सुनकर मौलाना साहब को अपनी गलती और हज़रत की इल्मी काबिलियत का अंदाज़ा हो गया।
हमारे आला हज़रत आशिके रसूल थे। कई बार ख़्वाब में मुस्तफा जाने रहमत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का दीदार फ़रमाया। यही नहीं आप हर जुमेरात को मदीना शरीफ पहुँच कर रोज़ए अक़दस पर हाजरी देते और वापिस तशरीफ़ लाया करते। यह बात हैरान करने थी की बरैली से मदीना हर जुमेरात को जाना और थोड़ी देर में हाजरी देकर आना कैसे मुमकिन हैं, लेकिन यह बात बिलकुल सच हैं। आप आला हज़रत में ऐसी करिश्माई ताकतें थी की आप हर जुमेरात को थोड़ी देर के लिए अचानक से गायब हो जाते और मदीना शरीफ पर हाजरी देकर वापिस आ जाते।
मौलाना हमीदुर्रहमान साहब बयां फरमाते हैं की एक वक़्त की बात हैं जब में बहुत छोटा था और बरैली शरीफ हाज़िर हुआ। जुमेरात की बात हैं जब में आला हज़रत के घर पर ही था। अचानक कोई साहब आये और हज़रत से मिलने की खवाहिश ज़ाहिर की। मैं यानि मौलाना हमीदुर्रहमान साहब जैसे ही आपको (आला हज़रत) को किसी के आने का पैगाम देने पहुंचे तो आपने देखा की आपके खास कमरे में कोई नहीं था। आपने आला हज़रत को बहुत तलाश किया लेकिन वह कही नज़र न आएं। मौलाना हमीदुर्रहमान साहब हैरान रह गए और सोचने लगे की अभी कुछ देर पहले तो यहाँ थे अचानक कहाँ गायब हो गए? अचानक कुछ देर बाद कमरे से आप आला हज़रत बाहर निकले। आपको देखकर सभी लोग हैरान रह गए और उनसे फरमाने लगे की आप कमरे में तो थे नहीं फिर आप कैसे तशरीफ़ ला रहे हैं? हम तो इसी कमरे के बाहर खड़े हैं और थोड़ी देर पहले हमने कमरे को देखा लेकिन वहां आप नहीं थे इसमें क्या राज़ हैं? आपने फ़रमाया अल्हम्दुलिल्लाह ! मैं हर जुमेरात को इस वक़्त अपने इसी कमरे से बरैली से मदीना मुनव्वरा हाजरी देता हूँ। यह बात सुनकर सभी लोगो के मुँह से एक ही अल्फ़ाज़ निकला सुभानअल्लाह सुभानअल्लाह ! आप आला हज़रत में ऐसी खूबियां थी की आप हर जुमेरात चंद लम्हो में आँखों से ओझल हो जाते और कुछ देर बाद वापिस अचानक नज़र आ जाते। अल्लाहो अकबर ऐसी शान वाले हैं हमारे आला हज़रत।
अल्लाह तआला हमें उनके नक़्शे कदम पर चलने और मुस्तफा जाने आलम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की सुन्नतों पर अमल करने की तौफीक अता फरमाए आमीन।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें