क्या हैं इफ्तार? आइये जानते हैं। सूरज डूब जाने के बाद जो हलाल चीज़े दिन में छोड़ दी गयी थी या कहे जिन कामों खासकर के खाना,पानी पीना की इजाज़त मिल जाने को इफ्तार कहा जाता हैं। जिसे ज़्यादातर लोग या आम बोल चाल में रोज़ा खोलना कहा जाता हैं।
ध्यान रहे की सूरज डूब जाने का जब यकीन हो जाये तब ही इफ्तार किया जाये। अँधेरा होने का इंतज़ार करना या सूरज डूब जाने के बाद रोज़ा खोलना यहूदियों का तरीका हैं। रोज़ा खोलने में एक मिनट की भी देरी न की जाये। इसलिए इफ्तार में देर करना या नमाज़ पढ़ लेने के बाद इफ्तार करना मकरूह हैं। हदीस शरीफ में हैं की रब फरमाता हैं ! जो इफ्तार करने में जल्दी करते हैं वह बन्दे मुझे बहुत प्यारे लगते हैं लेकिन इतनी जल्दी भी न की जाये की सूरज डूबने से पहले की इफ्तार कर लिया जाये। ऐसे जल्दबाज़ी करने से तो रोज़े का सवाब भी नहीं मिलेगा और दिन भर की भूक प्यास बेकार चली जाएगी।
छुहारे या खजूर से इफ्तार करना सुन्नत हैं। अगर यह न हो तो पानी से ही रोज़ा खोल लिया जाये। चूँकि खाली पेट मीठी चीज़ खाना तंदरुस्ती के लिए बेहतर हैं। इसलिए हमारे रसूल के अलावा सारे नबियों ने छुहारे या खजूर से ही रोज़ा इफ्तार करना बेहतर बताया हैं। पानी से भी इफ्तार करना बेहतर इसलिए हैं की क्यूंकि यह बदन में जमा सारी गंदगी को बाहर निकल देता हैं। ध्यान रहे रोज़ा हलाल चीज़ो से ही इफ्तार करे। अगर कहीं से रोज़ा खोलने के लिए कोई खाने पीने का सामान आये तो पहले गौर करे की यह सब सामान हराम कमाई का हैं या हलाल कमाई का। अगर वह हराम कमाई का हैं तो उससे परहेज़ करना ज़रूरी हैं।
हदीस शरीफ में हैं जिसने पानी से इफ्तार किया। उसे 10-10 नेकियां मिलेगी। खुदा उस बन्दे की 10-10 बुराइयां मिटाएगा। क्यूंकि पानी ऐसी चीज़ हैं जो गरीब से गरीब आदमी को भी नसीब हो सकता हैं। पानी से रोज़ा खोलने वाले यह न समझे की हम गरीब हैं, हमारे पास सिवाय पानी के और कुछ नहीं जिसे पी कर इफ्तार कर सके। पानी तो अल्लाह के दी हुई एक नेअमत है, जिसकी बरकत से आपको नेकियां भी मिल रही हैं और आपकी बुराइयां और गुनाह भी माफ़ हो रहे हैं। जो लोग इस हकीकत से वाकिफ हैं, वह काफी लज़ीज़ चीज़े अपने सामने होते हुए भी पानी से रोज़ा इफ्तार करते हैं।
अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया रोज़ा हमेशा पुरे परिवार यानि बीवी बच्चे माँ बाप भाई बहन वगैरह के साथ इफ्तार करा कीजिये। ऐसा करने वालो को एक लुक़मे के बदले एक गुलाम आज़ाद करने का सवाब मिलेगा। अल्लाह को वह लोग पसंद नहीं जो अलग अलग अपने कमरे में अपने परिवार के साथ अलग से रोज़ा इफ्तार करते हो। हमेशा आपस में मिलजुल कर रोज़ा इफ्तार किया जाये। ध्यान रहे रोज़ा इफ्तार करते वक़्त अगर कोई मुसाफिर या कोई रिश्तेदार अगर घर में आ जाये तो उसे इफ्तार के लिए ज़रूर बुलाया जाये। किसी को रोज़ा इफ्तार करवाना बड़े सवाब का काम हैं।
एक हदीस में अल्लाह के रसूल फरमाते हैं! जो रमज़ान में किसी रोज़ेदार को इफ्तार कराएगा उसके गुनाह बख्श दिए जायेंगे और वह जहन्नम से आज़ाद कर दिया जायेगा। ध्यान रहे रोज़ा हमेशा हलाल कमाई से इफ्तार कराया जाये। दूसरी तरफ जो शख्स ख़ुशी से रोज़ा इफ्तारी में शामिल होगा वह भी उतने ही सवाब का हक़दार होगा जितना इफ्तारी करवाने वाले शख्स को मिला हैं। एक सहाबा ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह ! अगर किसी शख्स के पास इतना माल या खाना न हो जिससे वह किसी को अच्छे से रोज़ा न खुलवा सके उस सूरत में क्या वह भी उतने ही सवाब का हक़दार होगा? आपने फ़रमाया यह सवाब तो उसे भी मिलेगा जिसने एक घूँट पानी या दूध से किसी को रोज़ा इफ्तार करवाया हो। सुभानअल्लाह
एक और हदीस में अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया ! जिसने किसी रोज़ेदार को पेट भर खाना खिलाया। अल्लाह पाक क़यामत में उसे मेरे हौज से ऐसा शरबत पिलायेगा की उसे कभी प्यास नहीं लगेगी। इससे ही आप अंदाज़ा लगा सकते हो की किसी को रोज़ा इफ्तार करवाना किस हद तक सवाब का काम हैं। एक चीज़ आप को बता दे की हालाँकि रोज़ा खुलवाना बड़ा सवाब का काम हैं इसका मतलब यह नहीं की आप खुद रोज़ा न रखे और सिर्फ रोज़ा खुलवाते रहे। आप को लगे की रोज़ा खुलवाने से इतना सवाब मिल रहा हैं तो रोज़ा रखने की क्या ज़रूरत? यह आपकी गलत फहमी हैं। रोज़ा हर हाल में फ़र्ज़ हैं। सिर्फ इफ्तार करवाने से सवाब तो मिलता हैं, लेकिन रोज़े का फ़र्ज़ अदा नहीं होता। रोज़ा का फ़र्ज़ अदा किये बिना कोई इबादत कबूल नहीं होती।
आजकल देखा जाता हैं लोग मस्जिदों में इफ्तार का सामान भेजते हैं। कुछ लोग इफ्तार पार्टी का इंतेज़ाम करते हैं। ऐसे मौको पर कई बेरोज़दार लोग भी जमा हो जाते हैं। जो अच्छी सेहत होते हुए भी रोज़ा नहीं रखते। हालाँकि आप किसी को मना नहीं कर सकते लेकिन जो शख्स रोज़ा न होते हुए भी रोज़ेदार के हिस्से का खाना खा रहा हैं उसे खुद ही सोचना चाहिए की मैं सही हूँ या गलत। इसके अलावा कई इफ्तार पार्टियों में बड़े बड़े राजनेता रसूखदार लोग इफ्तार पार्टी के बहाने राजनीतिक रिश्तो को मज़बूत करने में लग जाते हैं। ऐसे लोगो को इफ्तार या रोज़े से कोई मतलब नहीं होता। वह सिर्फ अपने आपसी रिश्तो और दुनियावी फ़ायदा हासिल करने के मकसद से ऐसी पार्टियां करते हैं। अगर आप एक सच्चे मोमिन हैं तो ऐसी पार्टियों से दूर रहे। क्यूंकि अक्सर ऐसी इफ्तार पार्टियों में इस्तेमाल किया जाने वाला खाना हराम कमाई का होता हैं। जिसे खाकर आप भी गुनहगार बन जायेंगे।
बहरहाल हम सभी को चाहिए की इफ्तार प्रोग्राम में ऐसे बड़े लोगो को बुलाने से बेहतर हैं आस पास के गरीब लोगों को इफ्तार पार्टी का न्योता दे। क्यूंकि ऐसे गरीब लोगों को मुश्किल से ही इस तरह का खाना नसीब होता हैं। ऐसे लोग बेरोज़दार भी हैं तो भी उनके लिए हर तरह के अच्छे खाने का इंतेज़ाम किया जाये। क्यूंकि ऐसे लोगों की ज़िन्दगी अक्सर कुछ दिन पुराना खाने पीने से ही निकलती हैं। ऐसे लोग इस तरह का अच्छा खाना इफ्तारी में देखकर बड़े खुश हो जाते हैं। जिनकी ख़ुशी से अल्लाह भी बड़ा खुश होता हैं। आप सभी से गुज़ारिश है इफ्तार पार्टी का मज़ाक न बनाये और जो ऐसी पार्टियों का असली हक़दार हैं उसे शरीक करके सवाब हासिल करे। अल्लाह हाफिज
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें