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इस्लाम में जिहाद क्या हैं? (Islam me Jihad Kya Hain?)

Jihad Kya hain

आज के दौर में हमारे देश में जिहाद शब्द का इस्तेमाल काफी हो रहा हैं। लोग इस शब्द को लेकर तरह तरह की बातें बना रहे है और जिहाद की परिभाषा को गलत तरीके से पुरे देश और दुनिया के लोगों बता रहे हैं। आखिर इस्लाम में जिहाद हैं क्या? आज के ब्लॉग में हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे की इस्लाम और जिहाद का क्या ताल्लुक हैं। 

इस्लाम में जिहाद क्या हैं?

आजकल के दौर में गैर मुसलमान जिहाद का मतलब लड़ाई, धोखा और किसी पर हमला ही समझते हैं। लेकिन क्या उन्हें मालूम हैं की हक़ीक़त में जिहाद की परिभाषा क्या हैं? हक़ीक़त में जिहाद का मतलब मेहनत, कोशिश करना,किसी चीज़ को पाने के लिए संघर्ष करना, ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाना, इल्म हासिल करने के लिए हर मुसीबत का सामना करना यह जिहाद के मायने हैं। क़ुरान मजीद में जिहाद और जंग दोनों का बयान आया हैं और दोनों के मतलब अलग अलग हैं। इससे मालूम चलता हैं की हर जिहाद कोई जंग या युद्ध नहीं। 

जिहाद कई तरह का होता हैं जैसे की अगर कोई बेवजह इस्लाम के मानने वाले लोगो को परेशान कर रहा हैं उनको नुकसान पहुंचा रहा हैं और उन्हें मार रहा हैं ऐसे लोगो के खिलाफ जंग लड़ना जिहाद हैं। इसका मतलब यह नहीं की किसी भी बेगुनाह या ऐसा जो नहीं कर रहा हैं उसके खिलाफ जंग की जाये। जिहाद सिर्फ उनके लिए हैं जो दीन को नुकसान पहुँचाना चाहते हैं। इस्लाम यह इजाज़त देता हैं की अगर कोई आपके ऊपर हमला कर रहा हैं। आपके बीवी बच्चो को मार रहा हैं। आप को उससे अपने और अपने परिवार की जान का खतरा हैं तो आप ऐसे लोगो के खिलाफ जंग कर सकते हैं और अपना और अपने दीन का बचाव कर सकते हैं। एक और उदाहरण लेते हैं की हमारे देश के सैनिको को पड़ोसी मुल्क के ज़ालिम सैनिक मार देते हैं उन पर बेवजह ज़ुल्म करते हैं तो ऐसे मुल्क के सैनिको के खिलाफ जंग लड़ना भी जिहाद हैं। 

हालाँकि हमारे देश और कई देशो में ऐसे ज़ुल्म के खिलाफ कानून बने हैं। हमें पहले उसी की मदद लेना चाहिए लेकिन अगर कानून किसी समय में आपकी मदद नहीं कर पाता हैं तो आप ऐसे ज़ुल्मी लोगो के खिलाफ आवाज़ उठा सकते हो जैसा की कई मर्तबा कुछ हमले और ऐसी घटनाएं अचानक हो जाती हैं। ऐसे समय में आप ही को अपनी जान बचाने के लिए दुश्मनो से सामना करना पड़ता हैं। ऐसे समय में इस्लाम इजाज़त देता हैं की आप ऐसे मौको पर दुश्मनो से लड़े और उनका सामना करे। इसकी इजाज़त सिर्फ इस्लाम में नहीं बल्कि कई और धर्मो में भी यह बात कही गयी हैं अगर ज़ुल्म बढ़ता ही जा रहा हैं और कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा हैं तो इन्हे रोकने के लिए जंग कर सकते हो। 

इस्लाम ने जिहाद की इजाज़त कब दी? 

उस दौर में मक्का में रहने वाले मुसलमानो पर ज़ालिम बहुत ज़ुल्म कर रहे थे और वहाँ के मुसलमान उस ज़ुल्म को बर्दाश्त कर रहे थे। ऐसा 13 साल तक चलता रहा।  ऐसे समय में मक्का के मुसलमानो को अपना घर व कारोबार छोड़ कर मदीना शरीफ जाना पड़ा।  मदीना पहुँचने के बाद भी ज़ालिमों ने वहां भी मुसलमानो पर ज़ुल्म शुरू कर दिया। ऐसे नाज़ुक मौके पर अल्लाह ने अपने मोमिन बन्दों को दीन के उन दुश्मनो से मुकाबला करने या जिहाद की इजाज़त नबी करीम सल्ललाहो अलैहि वसल्लम के ज़रिये दी। 

इजाज़त मिलने पर हज़ार हथियार बन्द पहलवानों से मुकाबला करने के लिए 313 मुजाहिद अपने रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के साथ बद्र के मैदान में पहुंचे। यह इस्लाम की पहली जंग थी और इस जंग में आपकी फतह हुई थी। अल्लाह के रसुल ने तलवार के ज़ोर से कभी इस्लाम नहीं फैलाया बल्कि दुनिया को तलवार के इस्तेमाल का सलीका सिखाया। उन्होंने बताया की ज़ुल्म को रोकने के लिए कभी कभी हथियार उठाना एक ज़रूरत ही नहीं बल्कि फ़र्ज़ बन जाता हैं।  

आपने फ़रमाया की जब ज़ालिम इंसानियत और धर्म को नुकसान पहुँचाने लगे और इंसानी जान माल की कोई कीमत न रह जाये ऐसे नाज़ुक वक़्त में सिर्फ ज़ुल्म को देखते रहना और घरो या इबादतगाहों में पनाह लेना कोई समझदारी की बात नहीं। ऐसे मौके पर ज़ुल्म के खिलाफ मैदान में उतर जाना और ज़ालिमों का सफाया करके पूरी दुनिया को सुकून और चैन का माहौल देना ही इंसानी फ़र्ज़ हैं। इस्लाम ने सिर्फ ऐसे मौको पर ही जिहाद की इजाज़त दी हैं।  

आजकल जो देखने को मिलता हैं की कुछ ग्रुप के लोगों ने इस्लाम के नाम पर बेगुनाह कुछ लोगों का गला काट दिया। औरतों पर ज़ुल्म किया उनके साथ गलत बर्ताव किया। ऐसे कामो और ऐसे लोगों का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं। जो लोग पैगम्बर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लमके बताई बातों के हिसाब से ज़ालिमों से लड़ता हैं। वही इस्लाम में जिहाद हैं। बेगुनाह लोगों को मारने की इजाज़त इस्लाम नहीं देता। इस्लाम सिर्फ उन्ही लोगों से लड़ने को कहता हैं जो आप पर ज़ुल्म कर रहे हो। 

आज हमारे देश में जिहाद को जो तरह तरह की नाम दिए जा रहे हैं इनका ज़िक्र कही भी क़ुरान में नहीं हैं। आज कुछ लोग हर गलत चीज़ को जिहाद से जोड़ रहे हैं। ऐसे लोगो से यही दरख्वास्त है की हर गलत चीज़ को इस्लाम से न जोड़े। जो गलत कर रहा हैं उसे इस्लाम ने यह करना नहीं सिखाया हैं। किसी की गलती को पुरे इस्लाम से जोड़ना बेवकूफी हैं। कौम के लोगों से गुज़ारिश हैं की कोई भी ऐसा गलत काम न करे जिससे दूसरे लोग सिर्फ आपके नाम को देखकर पुरे इस्लाम पर ऊँगली उठाये। बेशक आप अपने हक़ के लिए लड़ो, कामयाब बनो, देश और दुनिया में अपना और क़ौम का नाम रोशन करो, ज़रूरत पड़ने पर ज़ालिमों का ख़ात्मा करो यही असली जिहाद हैं।

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