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खाने पीने का इस्लामी तरीका (Islamic Way of Eating Food)

खाने पीने का इस्लामी तरीका (Islamic Way of Eating Food)
इस्लाम में हर काम के लिए इस्लामी तरीका तय किया गया हैं जिसे अपनाने पर दुनिया व आख़िरत के बेशुमार फायदे हैं। खाने खाने से पहले हाथ धोना तो सुन्नत हैं ही,अगर वज़ू कर लिया जाये तो उसकी बरकत से गरीबी,मुहताजी दूर हो जाएगी। दूसरा बेहतर तरीका यह है की घर वाले साथ मिल बैठकर खाना खाये प्यारे आका फरमाते है- अल्लाह को यह बात बहुत पसंद हैं की किसी मोमिन बन्दे को बीवी बच्चो के साथ दस्तरख्वान पर एक साथ खाना खाते देखे क्यूंकि जब सब दस्तरख्वान पर मिल बैठकर खाते हैं, तो अल्लाह पाक उन्हें रहमत भरी नज़रो से देखता हैं। खाना खाने से पहले हाथ धोना सुन्नत हैं हाथ धोने से कई बीमारियों के जरासीम (कीटाणु ) खत्म हो जाते हैं। अपने हाथो को धोने के बाद तौलिये से न पोछे   बल्कि खाने के बाद धोये तो ज़रूर पोछे।

खाना खाने से पहले बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम ज़रूर पढ़े ताकि खाने में बरकत हो और शैतान शरीक न हो सके क्यूंकि जिस खाने पर बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम नहीं पढ़ी जाती वह खाना शैतान के लिए हलाल हो जाता हैं, अगर कभी किसी वजह से शुरू में बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम पढ़ना भूल जाये तो याद आते ही बिस्मिल्लाहे औवलहु व आखिरहु पढ़ लिया करे।
खाना खाये तो सीधे हाथ से पानी पिए तो सीधे हाथ से बाएं हाथ से खाना पीना शैतान का काम हैं। 

दस्तरख्वान पर गिरे हुए रोटी चावलों वगैरह के टुकड़ो को खा लेना सुन्नत हैं, इसमें बरकत ही बरकत हैं वरना उसे शैतान खायेगा प्यारे आका फरमाते हैं, रोटी की कद्र व इज़्ज़त करो,वह आसमान व ज़मीन की बरकतो में से एक बरकत हैं जो शख्स या औरत दस्तरख्वान पर गिरी रोटी उठाकर खा लेगा वह बख्श दिया जायेगा। 
खाने के बाद उंगलियों को चाटकर बर्तन को उंगलियों से साफ़ कर देना भी सुन्नत हैं ऐसा करने वालो के लिए वह बर्तन दुआ करता हैं की जिस तरह तूने मुझे साफ़ करके शैतान की खुराक बनने से बचाया,अल्लाह पाक तुम्हे जहन्नम के अज़ाब से बचाये।

नंगे सर खाने पिने से परहेज़ करना चाहिए भर पेट खाना खाना नुकसानदेह साबित होता हैं हवा पानी के लिए जगह खाली रखना ज़रूरी हैं। पानी भी तीन साँस में पिए यह अल्लाह की बहुत बड़ी नेअमत हैं इसलिए पानी पिने के बाद अल्हम्दुलिल्लाह पढ़कर अल्लाह का शुक्र अदा करे। 
खाना खाने के बाद अल्हम्दुलिल्लाह हिल्लज़ी अतअमना व सकाना व जअलना मिनल मुस्लेमीन पढ़कर अल्लाह का शुक्र अदा करे।

अज़ान की अहमियत और फ़ज़ीलत (Importance and Superiority of Azan)

अज़ान की अहमियत और फ़ज़ीलत (Importance and Superiority of Azan)

अज़ान का मतलब हैं खबर देना या एलान करना इस्लामी शरीयत की ज़बान में अज़ान उन अल्फाज़ो को कहा जाता हैं जिनसे लोगो को खबर दी जाती हैं की नमाज़ का वक़्त हो चुका हैं मस्जिद में आये और जमाअत से नमाज़ अदा करे। फ़र्ज़ नमाज़ो को अदा करने के लिए अज़ान देना सुन्नत हैं। जिस बस्ती से अज़ान की आवाज़ आये तो मालूम चल जाता हैं की यहाँ के रहने वालो में मुस्लमान भी हैं यही वजह है की सरकार या सहाबा जब जिहाद के लिए मदीना से बाहर तशरीफ़ ले जाते तो जिस बस्ती से अज़ान की आवाज़ सुनते तो अन्दाज़ा लगा लिया करते की यहाँ मुसलमान रहते हैं।

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर का बयान हैं की जब हम मक्का से हिजरत करके मदीना आये तो लोगो को नमाज़ के लिए जमा करने की तरकीब के बारे में सोच विचार करने लगे, लोगो ने अपनी अलग अलग राय पेश की कुछ सहाबा ने रात को ख्वाब में फ़रिश्तो की ज़बानी कुछ ऐसे अल्फ़ाज़ सुने जिन्हे जब उन्होंने अल्लाह के रसूल से बयान किया तो आका बहुत खुश हुए और हज़रत बिलाल को बुलाकर फ़रमाया ! अब नमाज़ के वक़्त तुम यही अल्फ़ाज़ बुलंद आवाज़ से अदा किया करो चुनांचे वही अल्फ़ाज़ क़यामत तक के लिए अज़ान बन गए जो पूरी दुनिया में अदा किये जाते हैं।

हज़रत मुआविया रदियल्लाहो अन्हो का बयान हैं की मैंने अल्लाह के रसूल पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को फरमाते हुए सुना हैं की क़यामत के दिन अज़ान देने वालो की गर्दने सबसे ऊँची होगी इस बात से पता चल जायेगा की यह लोग दुनिया में अज़ान पढ़ा करते थे। अल्लाह की तरफ से अज़ान पढ़ने वालो के लिए बहुत बड़ा ऐजाज़ होगा।

इसी तरह एक और हदीस में आया हैं की मुअज़्ज़िन (अज़ान देने वाला) की आवाज़ जहाँ तक पहुँचती हैं वहां तक की सारी चीज़े जैसे इंसान, जिन्न और दूसरी मखलूक सभी क़यामत के दिन उसके ईमान की गवाही देंगे।
अज़ान की आवाज़ सुनते ही खामोश हो जाये और अज़ान के कलेमात का जवाब दे अज़ान का जवाब देना वाजिब हैं अगर कई कई मस्जिदों से अज़ान की आवाज़ सुनाई दे तो सिर्फ एक ही अज़ान का जवाब देना काफी हैं। खुलूसे दिल से अज़ान का जवाब देने वालो को अल्लाह के रसूल ने जन्नत की बशारत दी हैं।

       लिहाज़ा जब भी अज़ान हो हम सभी को कुछ देर के लिए अज़ान सुनने और उसका जवाब देने के लिए तैयार रहना चाहिए और नमाज़ की पाबन्दी करनी चाहिए।

इस्लाम में सलाम की अहमियत (Importance of Salam in Islam)


इस्लाम में सलाम की अहमियत (Importance of Salam in Islam)

इस्लामी शरीयत में सलाम करने की बड़ी अहमियत हैं सलाम करना सुन्नत हैं और इसका जवाब देना वाजिब हैं अल्लाह के प्यारे रसूल पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा को सलाम आम करने की तालीम दी।

सलाम (अस्सलाम अलैकुम) कहना हमारी इस्लामी पहचान हैं आज जबकि हमारी इस्लामी पहचान खत्म होती जा रही हैं चेहरों से सुन्नते (दाढ़ी) खत्म होती जा रही हैं अपने जान पहचान वालो को तो पहचाना जा सकता हैं लेकिन अपने दूसरे दीनी भाइयो की पहचान मुश्किल हो चुकी हैं। ऐसे नाज़ुक माहौल में अगर हम सलाम को भी अपने समाज से रुखसत कर देंगे तो कितना बड़ा सितम होगा।

सलाम एक दुआ हैं जो हम अपने किसी दीनी भाई को देते हैं और जवाब में खुद भी उसकी तरफ से दुआ पाते हैं आपने अपने मिलने वाले से अस्सलामो अलैकुम कहा तो मतलब यह हुआ की ऐ मेरे दीनी भाई आप पर सलामती हो,अल्लाह आपको सलामत रखे आपकी ये दुआएं सुनकर सामने सामने वाला भी आपको दुआएं देते हुए जवाब देता हैं वाअलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाहे व बरकतहु मतलब यह हैं की ऐ मुझे सलामती की दुआ देने वाले मेरे भाई तुम पर भी अल्लाह की सलामती हो अल्लाह पर तुम पर रहम फरमाए अपनी रहमतो और बरकतो से नवाज़े!

लेकिन आज के इस दौर में हम सलाम का मतलब व मकसद भूल बैठे हैं और इसे एक तरह की रस्म समझ लिया हैं और जब कोई हकीकत रस्म बन जाती हैं फिर उसकी बरक़तें खत्म हो जाती हैं आज के माहौल में तो लोग यह समझ बैठे हैं की सलाम करना तो छोटो और गरीबो का हक़ हैं बड़े और बड़ो को सलाम करना ज़रूरी नहीं हाल यहाँ तक हो गया हैं की बड़े लोग छोटो को सलाम करना अपनी तौहीन समझने लग गए हैं इसलिए जब कोई छोटा उन्हें सलाम करता हैं तो सीधे मुँह जवाब में वालेकुम सलाम कहना भी मुनासिब नहीं समझते।

बहरहाल सलाम करने के फायदे बेशुमार हैं हज़रात आदम अलैहिस्सलाम ने फ़रिश्तो को सलाम किया और फ़रिश्तो ने जवाब दिया यह ज़रूरी नहीं की हम जिसे पहचानते हो उसे ही सलाम करे जी नहीं, अपने हर दीनी भाई को चाहे उसे पहचानते हो या नहीं इस रिश्ते से की वह आपका दीनी भाई हैं आपको सलाम ज़रूर करना चाहिए और सलाम के लिए कम से कम अस्सलामो अलेकुम तो कहना ही चाहिए।

आज कल का ज़माना बड़ा तेज़ रफ़्तार ज़माना हैं ज़िन्दगी एक मशीन की तरह हो गयी हैं किसी को फुर्सत नहीं इसलिए रास्ता चलते हाथ उठाकर मुसकुराकर सर झुकाकर सलाम करने की रस्मे निभाई जा रही हैं इससे इतना तो समझा जा सकता हैं की सामने वाले ने मुझे सलाम किया या मेरे सलाम का जवाब दिया लेकिन इससे सलाम की बरक़तें हासिल नहीं होगी लेकिन क्या किया जाये फुरसत नहीं हाँ शिकायत ज़रूर दूर हो जाएगी की फलां शख्स मेरे सामने से गुज़रा लेकिन सलाम नहीं किया क्यूंकि अब तो खाली रस्मे निभाने का ज़माना ही रह गया हैं हक़ीकते तो रुखसत होती जा रही हैं।

सलाम करना तौहीन नहीं बल्कि इज़्ज़त हैं समझदार लोगो की नज़र में भी और अल्लाह और रसूल की नज़रो में भी सलाम करने वाला कौम की नज़रो में कबीले एहतराम होता हैं सलाम सादगी की पहचान हैं,
अगर कोई बड़ा आदमी जो किसी भी ऐतबार से बड़ा हो उम्र दौलत इल्म किसी भी ऐतबार से अगर लोगो से सलाम करने में पहल करे तो लोग उसे अदब व एहतराम की नज़रो से देखेंगे और अगर वही आदमी सलाम न करे तो कहेंगे की कितना घमंडी आदमी हैं सलाम करने की भी तौफीक नहीं इसे!

बहरहाल सलाम हर ऐतबार से हमारे लिए रहमत हैं दीन के ऐतबार से भी और दुनिया के ऐतबार से भी इसलिए हम सभी को अपनी इस्लामी शान बनाये रखने के लिए अपने रसूल के फरमान की रौशनी में सलाम को आम करना चाहिए।

नमाज़ की बरकते (Prosperity of Namaz)

नमाज़ की बरकते (Prosperity of Namaz)

नमाज़ एक इबादत हैं जो हर बालिग मर्द और औरत पर फ़र्ज़ हैं दुनिया व आख़िरत में इसकी बेशुमार बरकते हैं आज की मेडिकल साइंस में नए नए अंदाज़ में इसकी बरकते और फायदे बताये गए हैं जिन्हे समझकर लोग इस्लाम के करीब आ रहे है और जिनके नसीब में इस्लाम की दौलत मुकद्दर हो चुकी है। वह इस नेअमत को हासिल कर लेते हैं एक मशहूर लेखक ने अपनी किताब Phenomena of Spiritualism में लिखा हैं की लालच, झूठ ,जलन,बदला लेने की भावना ऐसी बहुत सी ख़राब बातें हैं जिनसे बहुत सारी बीमारियां पैदा हो जाती हैं यह सारे गैर अख़लाक़ी काम नमाज़ की बरकत से दूर हो जाते हैं।

मशहूर लेखक Vice admiral William Usborne Moore ने अपनी किताब The Voices में कहा हैं की अगर रूहानी मुकाम हासिल करना चाहते हो तो नमाज़ पढ़ो।

जब इमाम तिलावत करता हैं और मुक्तदी ध्यान के साथ सुनते हैं तो पढ़ने और सुनने वालो के बीच एक खास तरह की लहर पैदा हो जाती हैं और ये लहरें दोनों के बीच नूर पैदा करती हैं इमाम के द्वारा बोले गए क़ुरान के हर लफ्ज़ की बरकत से मुक्तादियो की बहुत सी रूहानी बीमारियों का खात्मा हो जाता हैं नमाज़ में तिलावत की लहरें ब्लड कैंसर का भी खात्मा करती है।

औरतो के लिए हुक्म हैं की वह सज्दे में कुहनियो को न फैलाये बल्कि उनकी कुहनियां बदन के साथ लगी रहे इस में हिकमत यह हैं की ऐसा करने से उनके जिस्म पर बहुत अच्छा असर पड़ता हैं।

क़ुरान की फ़ज़ीलत (Superiority of Quran)

क़ुरान की फ़ज़ीलत (Superiority of Quran)

क़ुरान शरीफ अल्लाह का कलाम हैं हिदायत का सामान हैं,सिरते मुस्तकीम हैं, अल्लाह की रहमत हैं, इसकी रौशनी में इंसान अपनी ज़िन्दगी का मकसद समझता हैं इसके वसीले से बन्दा अपने रब से कलाम करता हैं यह रूह की ग़िज़ा और दिल की शिफा,अक्ल की रहनुमा, इल्म का खज़ाना, आँखों का नूर, दिन का चैन व सुरूर और चिरागे मंज़िल हैं।
इसकी बदौलत मोमिनो मुत्तकियो और अल्लाह के नेक बन्दों को खुदा की मुहब्बत नसीब होती हैं क़ुरान से बन्दा अपने रब के करीब होता हैं उसे रूहानी सुकून और अपनी ज़िन्दगी में मिठास नसीब होती हैं जिसे लफ्ज़ो में बयां नहीं किया जा सकता।

क़ुरान पढ़ने की फ़ज़ीलत 

क़ुरान मजीद की तिलावत की बरकत से मोमिनो को इज़्ज़त, रहमते इलाही और कामयाबी नसीब होती हैं एक मोमिन बन्दा जब क़ुरान की आयतो को पढ़ता या सुनता हैं जिसमे अल्लाह पाक ने अपने बन्दों को तरह तरह की नेअमतें अता फरमाने का वादा फ़रमाया हैं तो उसकी रूह ख़ुशी के मारे झूम उठती हैं और जब उन आयतो को पढ़ता या सुनता हैं जिसमे उसने नाफ़रमानो को सज़ाये देने का बयां फ़रमाया हैं तो वह ख़ौफ़े इलाही से कांपने लगता हैं आँखों से आंसुओ की झड़ी लग जाती हैं।
घर चाहे जितना खूबसूरत और आबाद हो लेकिन अगर उसमे क़ुरान की तिलावत न होती हो तो वह घर अल्लाह की नज़र में खंडहर और वीरान घर कहलाता हैं।
अल्लाह के प्यारे रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इसकी अहमियत बयान फरमाते हुए इरशाद फरमाते हैं जिसके दिल में क़ुरान का कोई हिस्सा नहीं मतलब जिसे क़ुरान की कोई भी सुरते आयते न याद हो वह उजड़े हुए घर की तरह हैं इसलिए क़ुरान की तालीम को आम फरमाने पर ज़ोर देते हुए प्यारे रसूल ने फ़रमाया हैं की सबसे अच्छा आदमी वह हैं जो क़ुरान शरीफ पढ़े और दुसरो को भी पढाये सिखाये।
अगर हम अल्लाह का करीबी बन्दा बनना चाहते हैं तो उसके लिए बेहतरीन सहारा व वसीला क़ुरान शरीफ हैं जो शख्स जितने अदब व खुलूस से क़ुरान शरीफ की तिलावत करता हैं वह उतनी देर तक अपने रब से बात करता हैं क़ुरान की तिलवात करने से रहमते नाज़िल होती हैं घर में हो रही परेशानी दूर हो जाती हैं मुश्किल से मुश्किल काम आसान हो जाते हैं अल्लाह तआलाह हमे क़ुरान मजीद की तिलवात की करने की तौफीक अता फरमाए आमीन।

हज और उमराह की फ़ज़ीलत (Superiority of Hajj and Umrah)

हज और उमराह की फ़ज़ीलत (Superiority of Hajj and Umrah)
                                             
   पिछली पोस्ट में हमने इस्लाम के पांच प्रमुख स्तम्भों में से एक स्तम्भ हज क्या हैं के बारे में बताया था, आज हम इसकी फ़ज़ीलत के बारे में बात करेंगे। हज़रत अली शेरे खुदा फरमाते है अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया की जिसके पास हज के सफर का ज़रूरी सामान हो,जाने आने के लिए पैसो का इंतेज़ाम हो जिस्मानी हालत अच्छी हो इतना सब कुछ होते हुए भी जो हज न करे तो फिर कोई फर्क नहीं की वो यहूदी होकर मरे या ईसाई होकर ऐसा इसलिए कहा गया हैं क्यूंकि अल्लाह का फरमान हैं जो लोग हज करने की हैसियत रखते हो उनके लिए फ़र्ज़ हैं की वह हज करे।

एक हदीस हैं की हज़रत अबदुल्लाह बिन मसऊद फरमाते हैं की हज और उमराह गरीबी मुहताजी और गुनाहो को इस कदर दूर कर देते हैं जिस तरह लोहार और सुनार की भट्टी लोहे, सोने, चांदी का मैल कुचैल दूर कर देती हैं। हज और उमराह पर जाने वाले अल्लाह के खास मेहमान हैं अगर वह अल्लाह से दुआ करें तो अल्लाह उनकी दुआ कबूल फरमाता हैं और उनके गुनाहो को माफ़ कर देता हैं। हाजियो पर अल्लाह की खास इनायत होती हैं। 

हदीस शरीफ में हैं की अल्लाह तआलाह रोज़ाना अपने हाजी बन्दों के लिए 120  रहमतें नाज़िल फरमाता हैं 60  रहमतें उनके लिए होती हैं जो तवाफ़ करते रहते हैं। 40  रहमतें हरम शरीफ में नमाज़ पढ़ने वालो के लिए और 20  रहमतें काबा शरीफ को देखने वालो के लिए होती हैं तवाफ़ की फ़ज़ीलत बयान फरमाते हुए अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया की जिसने 50 बार बैतुल्लाह शरीफ का तवाफ़ कर लिया वह शख्स गुनाहो से ऐसे पाक हो गया जैसे की आज ही अपनी माँ के पेट से बाहर आया हैं।

हलाल और हराम कमाई (Halal and Haram Income)


हलाल और हराम कमाई (Halal and Haram Income)


हलाल
और हराम में फर्क समझकर ज़िन्दगी गुज़ारना हर मुस्लमान का फ़र्ज़ हैं हलाल कमाई में जहाँ बेशुमार फायदे हैं वही हराम की कमाई तबाही और बर्बादी का सामान हैं।

अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का फरमान हैं की जो शख्स हलाल रोज़ी कमाता हैं और हराम की कमाई से दूर रहता हैं अल्लाह उसके दिल को अपने नूर से रोशन कर देता हैं दूसरी और जो  शख्स हराम की कमाई करके उस कमाई को सदका और खैरात में देता हैं उसका वह सदका अल्लाह की तरफ से कबूल नहीं किया जाता अगर वह उस कमाई को खर्च करता हैं तो उस कमाई में बरकत नहीं होती और अगर वो उस कमाई को छोड़ कर मर जाये तो वह कमाई जहन्नम का सामान बन जाती हैं हराम की कमाई करने वाले की कोई दुआ कबूल नहीं की जाती बल्कि उस पर अल्लाह की तरफ से हमेशा लानत बरसती रहती हैं।

हज़रत सय्यदना सुफियान सौरी रहमतुल्लाह अलैहि फरमाते हैं जो हराम माल से सदका खैरात करता हैं वो ऐसे शख्स के बराबर हैं जो नापाक कपड़ो को पेशाब से धोता हैं।

हज़रत सहल बिन अब्दुल्लाह तुसतरी रहमतुल्लाह अलैहि फरमाते हैं की हलाल रिज़्क़ से बदन के सारे हिस्से इबादत में लगे रहते हैं दूसरी और हराम रिज़्क़ से गुनाहो में इज़ाफ़ा होता रहता हैं।

किसी बुज़ुर्ग ने फ़रमाया हैं की जब कोई शख्स हलाल रोटी का पहला निवाला खाता हैं तो उसके पहले के गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं जो इंसान हलाल रोज़ी की कमाई की तलाश में रहता हैं उसके गुनाह ऐसे झड़ते हैं जैसे पेड़ के पत्ते झड़ते हैं। हलाल कमाई की बरकतो के बारे में आप हमारी आगे की पोस्ट हलाल कमाई की बरकत को पढ़ सकते हैं

लिहाज़ा हम सभी को अल्लाह से यही दुआ करनी चाहिए की अल्लाह हमें ऐसे हराम कामो से दूर रहने की तौफीक अता फरमाए जो सीधे जहन्नम की और ले जाते हैं और अपने दीन पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए आमीन ।

आयतें शिफा क्या है? जानिए इसे पढ़ने के अद्भुत फायदे

इस्लाम एक दीन है जो हर समस्या का हल पेश करता है, चाहे वह रूहानी हो या जिस्मानी। इस्लामिक शिक्षाओं में कुरान मजीद को सबसे महत्वपूर्ण माना जात...

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